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कानून मंत्री मेघवाल ने संस्थागत मध्यस्थता की वकालत की
By Virat baibhav | Publish Date: 14/6/2025 3:41:38 PM
नई दिल्ली। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शनिवार को संस्थागत मध्यस्थता की वकालत करते हुए कहा कि यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। इससे पहले ओएनजीसी के चेयरमैन ने मध्यस्थता की कार्यवाही को समयबद्ध बनाने का आग्रह किया। संस्थागत मध्यस्थता पर यहां एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि संगठनों को समय की जरूरत के हिसाब से लचीला और कठोर होने के लिए तैयार रहना चाहिए, ताकि उनके हितों की रक्षा और राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान सुनिश्चित हो सके। मेघवाल ने कहा कि अधिकारियों को जोखिम उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए और अपने संगठन के वित्तीय हितों को सुनिश्चित करने के लिए प्रचलित रास्ते पर नहीं चलना चाहिए।
मेघवाल ने अफसोस जताया कि मध्यस्थता भारतीय संस्कृति का हिस्सा थी, लेकिन कहीं न कहीं यह अवधारणा बाधित हो गई और अन्य देश अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के केंद्र बन गए। उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत जल्द ही अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के नए केंद्र के रूप में उभरेगा। इस मौके पर सार्वजनिक क्षेत्र की ओएनजीसी के चेयरमैन अरुण कुमार सिंह ने कहा कि समय ही धन है, इसलिए मध्यस्थता की प्रक्रिया को समयबद्ध बनाने की जरूरत है, न कि अंतहीन।
उन्होंने कहा कि व्यावसायिक विवादों का समयबद्ध तरीके से निपटारा कारोबारी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जरूरी है। सिंह ने कहा कि विवाद मुख्यत: तीन कारणों से उत्पन्न होते हैं: अधिकारियों का अत्यधिक रूढ़िवादी होना जो अपनी जान बचाने के लिए जिम्मेदारी दूसरे पर डाल देते हैंअ विक्रेताओं का अत्यधिक आशावादी होना जो कम बोली पर अनुबंध लेते हैं और बाद में काम पूरा करने में विफल हो जाते हैं और स्थिति से बचने के लिए विवाद पैदा करते हैंअ और अनुबंधों में कठोरता, जो कार्यों को पूरा करना कठिन बना देती है। विधि सचिव अंजू राठी राणा ने कहा कि सरकार मध्यस्थता और बीच-बचाव प्रक्रियाओं को तेज और आसान बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।
उन्होंने विधि मामलों के विभाग के एक हालिया निर्देश को याद किया, जिसमें न्यायिक हस्तक्षेप को कम करने और तदर्थ मध्यस्थता के बजाय संस्थागत मध्यस्थता का उपयोग करने पर जोर दिया गया है। भारतीय अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र के चेयरमैन न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हेमंत गुप्ता ने कहा कि वाणिज्यिक विवादों को निपटाने के लिए तदर्थ प्रणाली के बजाय संस्थागत मध्यस्थता को अपनाने के लिए पक्षों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा।