क्या कृत्रिम मिठास हमारे स्वास्थ्य के लिए ठीक है? वर्तमान साक्ष्य क्या कहते हैं, जानिए
उत्तरोत्तर खाद्य पदार्थों में चीनी की मात्रा कम करने तथा उनका आकर्षक स्वाद बरकरार रखने के लिए उनमें कृत्रिम मिठास (आर्टिफिशियल स्वीटनर) मिलाई जा रही है। लेकिन एक उभरते अनुसंधान संगठन ने कहा है कि ये गैर-पोषक मिठास (स्वीटनर) हमेशा स्वास्थ्यवर्धक और सुरक्षित विकल्प नहीं हो सकती हैं। तो अगर हम चीनी खाने के नुकसान के बिना मीठे स्वाद वाले खाद्य पदार्थों का आनंद लेना चाहते हैं तो हमारा सबसे अच्छा विकल्प क्या है?
कृत्रिम मिठास मूल रूप से मीठे स्वाद को महसूस करने वाले हमारे संवेदी मार्ग को उत्तेजित करने के लिए रसायनों के रूप में विकसित की गई है। चीनी के अणुओं की तरह, ये मिठास सीधे हमारे मुंह में स्वाद संवेदकों पर कार्य करती हैं। वे शरीर को एक तंत्रिका संकेत भेजकर ऐसा करती हैं कि उच्च कार्बाेहाइड्रेट वाले खाद्य स्रोत का सेवन किया गया है - वे शरीर को ऊर्जा के वास्ते उसे उपयोग करने के लिए तोड़ने के लिए कहती हैं।
चीनी के सेवन की स्थिति में, यह हमारे डोपामिनर्जिक सिस्टम को भी उत्तेजित करती है। यह (डोपामिनर्जिक सिस्टम) मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो प्रेरणा और इनाम के लिए जिम्मेदार है, जो चीनी की लालसा से जुड़ा हुआ है।
जैव विकास की दृष्टि से, इसका मतलब है कि हम ऊर्जा के स्रोत के लिए और अपना अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए चीनी की अधिक मात्रा वाले भोजन की तलाश करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, चीनी का अत्यधिक सेवन चयापचय संबंधी व्यवधान जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है, जो मोटापे और मधुमेह का कारण बन सकता है। इसी तरह, जब चीनी के बजाय कृत्रिम मिठास इस उत्तेजना का कारण बनती है, तो इसी तरह के चयापचय असंतुलन के उत्तरोत्तर सबूत सामने आते हैं। यह इस तथ्य के बावजूद होता है कि कृत्रिम मिठास डोपामाइन सिस्टम को उत्तेजित नहीं करती है।
दरअसल, इस वर्ष के प्रारंभ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि सुक्रालोज़ (यह मात्रा शीतल पेय के दो कैन में मौजूद चीनी के बराबर होती है) का सेवन करने के दो घंटे के भीतर, प्रतिभागियों में शारीरिक भूख की प्रतिक्रिया बढ़ गई। अनुसंधान में हाइपोथैलेमस में रक्त प्रवाह को मापा गया। हाइपोथैलेमस हमारे मस्तिष्क का वह क्षेत्र है जो भूख नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने (अनुसंधानकर्ताओं ने) पाया कि सुक्रालोज मस्तिष्क के इस क्षेत्र में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है।
अध्ययनों से यह भी पता चला है कि भूख बढ़ाने वाले हार्माेन लेप्टिन की तरह ही मिठास न्यूरॉन्स को उत्तेजित कर सकती हैं। कालांतर में यह हमारी भूख की सीमा को बढ़ा सकता है - जिसका अर्थ है कि हमें (पेट) भरा हुआ महसूस करने के लिए अधिक भोजन खाने की आवश्यकता है। इससे पता चलता है कि कृत्रिम मिठास खाने से हमें अधिक भूख लगती है, जिससे अंतत: हम अधिक कैलोरी का सेवन कर सकते हैं। और यह भूख लगने तक ही सीमित नहीं है। बीस सालों तक किए गए एक बड़े अध्ययन में पाया गया कि मिठास के सेवन और शरीर में वसा के संचय के बीच संबंध है।
दिलचस्प बात यह है कि अध्ययन में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से बड़ी मात्रा में मीठे पदार्थों का सेवन करते हैं (प्रतिदिन तीन या चार कैन डाइट सोडा के बराबर), उनमें मोटापे की समस्या उन लोगों की तुलना में लगभग 70 प्रतिशत अधिक होती है, जो कम मात्रा में कृत्रिम मीठे पदार्थों का सेवन करते हैं (प्रतिदिन आधे कैन डाइट सोडा के बराबर)।
(द कन्वरसेशन)